GK-भारत में यूरोपियों का आगमन (European Advent In India) GK FOR COMPETITIVE EXAMINATIONS

GK-भारत में यूरोपियों का आगमन (European Advent In India) GK FOR COMPETITIVE EXAMINATIONS

भारत में यूरोपियों  का  आगमन 

(पार्ट-1)  

पूर्तगाली (Portuguese)




17 मई,1498 को केरल के कालीकट नामक नगर में समुद्री मार्ग से मालाबार तट पर  पुर्तगाली समुद्री यात्री वास्कोडिगामा भारत पहुंचा। 

कालीकट में  उस समय राजा ज़मोरिन (Zamorin was the King of Kalicut) का शासन था। 

1502AD में उसने कोचीन में पूर्तगालिओं ने पहला कारखाना स्थापित किया । 

भारत के साथ व्यापार करना ही शुरू में पूर्तगालियों का उद्देश्य( Initially trade with India was the main objective of Portuguese) था। 

वास्कोडिगामा द्धारा भारत से ले जाया गया मसाला(60 Times profit by selling the spices taken from India)उसकी पूरी यात्रा के खर्च से साठ  गुना अधिक टॉम पर बीका। 

फ्रांसिस्को डी -अलमिडा भारत में आने वाला प्रथम पूर्तगाली गवर्नर था जो की 1503  AD में भारत आया।

1509 में अलमिडा ने मिश्र तथा गुजरात के बेड़े को पराजित किया।

अलमिडा ने भारत में  अपना अधिग्रहण एक विशेष निति के तहत किया जिसे " पालिसी ऑफ़ ब्लू वाटर"(Policy of Blue Water) भी कहा जाता है।  

अलमिडा के बाद 1509 AD में अल्फोंसो डी - अल्बुकर्क (Alfoso -d -Albuquerque) भारत में आया।  

1510 AD में उसने  बीजापुर के सुल्तान को हरा कर गोवा को जीता। 

पूर्तगालि अपने आप को सागर का स्वामी (King of Sea) कहते थे।

गोवा पर अधिग्रहण करने के लिए तिमैया नामक हिन्दू ने पूर्तगालिओं(A Hindu named Timaiya helped Portuguese) की सहायता की थी। 

अल्बुकर्क के ही समय पूर्तगाली साम्राज्य भारत में फैला। 

अल्बुकर्क को ही भारत में पूर्तगाली साम्राज्य का असली संस्थापक(Considered as real founder of Portuguese Empire in India) माना जाता है। 

उसने सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया। 

उसके बाद नीनो डा कुन्हा ने 1530 में अपनी राजधानी कोचीन से गोवा स्थानांतरित की और  दिव  पर 1535 में तथा दमन पर 1539 में कब्ज़ा किया। 

मार्टिन अल्फोंसो दे सौज़ा 1542 -45 के साथ प्रसिद्ध ईसाई  संत Fransisco Xavier भी भारत आये। 


1631 में शाहजहां ने  आक्रमण कर पूर्तगालिओं से हुगली छीन ली। 

1661 में पूर्तगाली राजा ने अपनी बहन से शादी के वक्त दहेज़ के उपहार में रूप में बॉम्बे को इंग्लैंड के चार्ल्स द्धितीय को दे दिया। 

धीरे धीरे इनके भारतीय अधिग्रहणों पर किसी और का नियंत्रण होता गया।  वे भारत में 1961 तक रहे हालाँकि तब उनके पास गोवा, दमन और दीव ही रह गए थे। 

पूर्तगालियों के आने से भारत में तम्बाकू की खेती, जहाज़ निर्माण (Ship building)और प्रिंटिंग प्रेस(Printing Press) आदि कार्य प्रारम्भ हुए। 

डच (Dutch)



पूर्तगालिओं के तरह डच भी भारत में व्यापर (also came here for trade) करने ही आये थे।

1552 में एम्स्टर्डम के व्यापारियों ने भारत के साथ व्यापर करने के लिए एक व्यापारिक कंपनी की स्थापना  की।

डच ईस्ट इंडिया कंपनी 1602 AD में स्थापित हुई। 

1605 AD डचों ने मसूलीपटनम  में अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की। तथा अन्य फ़ैक्टरियाँ पुलिकट, चिनसुरा, कारिकल, और कासिम बाजार,बालासोर, नेगपटम में स्थापित की। 

डचों का भारत में व्यापर का मुख्य केंद्र पुलिकट (Pulicut)था।  

डचों ने भारत में रहने के दौरान सिक्कों की टकसाल पर हाथ (Started the coinage in India)आजमाया। 

उनके व्यापार के फलस्वरूप उन्होंने कोचीन, मसूलीपट्टम, नागपट्टम पॉन्डिचेरी और पुलीकट में टकसालों की स्थापना की। इससे भी अधिक, भगवान वेंकटेश्वर, (Lord Vishnu) की एक तस्वीर के साथ सोने का शिवालय पुलीकट टकसाल में जारी किया गया था। डच द्वारा जारी किए गए सिक्के सभी स्थानीय सिक्कों पर बनाए गए थे।

डच द्वारा व्यापार किए जाने वाले प्रमुख भारतीय उत्पाद कपास(Cotton), इंडिगो, रेशम(Silk), चावल और अफीम (Opium) थे।

1639 में उन्होंने गोवा पर आक्रमण किया परन्तु 1641 में विजय प्राप्त हुई तथा डचों ने लंका पर 1658 पर भी विजय प्राप्त की।  

1759 तक डचों तथा अंग्रेज़ों के मध्य मसालों के लिए युद्ध होता  रहा जिसमे अंग्रेज़  विजयी हुए।  

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